प्रस्तावना (जारी…)

अपने एक निबंध कुटज में ’हजारी प्रसाद द्विवेदी ’ ने लिखा है –

“नाम में क्या रखा है, कोई भी नाम रख लो ।”

हो सकता है यह बात अधिकांश स्थानों पर सत्य हो किन्तु सर्वत्र इसकी सत्यता संदिग्ध ही है । परमात्मा के विविध नामो की चर्चा में गोस्वामी तुलसीदास ने एक कदम आगे बढ़कर अपना ’वीटो पावर’ (Veto Power) लगाया था –

“यद्यपि प्रभु के नाम अनेका । श्रुति कँह अधिक एक ते एका ।

राम सकल नामन ते अधिका । होउ नाथ अघ खग गन बधिका ।”

जहाँ तक अज्ञेय नाम का संबंध है, यह नाम भी मुझे कम अर्थवाह प्रतीत नहीं हुआ । ’अ’ वर्णमाला का पहला अक्षर, ’ज्ञ’ वर्णमाला का अंतिम अक्षर । दोनों मिलकर ’अज्ञ’ हुए । ’अ’= सम्पूर्ण । ज्ञ= ज्ञान ।

अपने एक निबंध कुटज में ’हजारी प्रसाद द्विवेदी ’ ने लिखा है –

“नाम में क्या रखा है, कोई भी नाम रख लो ।”

हो सकता है यह बात अधिकांश स्थानों पर सत्य हो किन्तु सर्वत्र इसकी सत्यता संदिग्ध ही है । परमात्मा के विविध नामो की चर्चा में गोस्वामी तुलसीदास ने एक कदम आगे बढ़कर अपना ’वीटो पावर’ (Veto Power) लगाया था –

“यद्यपि प्रभु के नाम अनेका । श्रुति कँह अधिक एक ते एका ।

राम सकल नामन ते अधिका । होउ नाथ अघ खग गन बधिका ।”

जहाँ तक अज्ञेय नाम का संबंध है, यह नाम भी मुझे कम अर्थवाह प्रतीत नहीं हुआ । ’अ’ वर्णमाला का पहला अक्षर, ’ज्ञ’ वर्णमाला का अंतिम अक्षर । दोनों मिलकर ’अज्ञ’ हुए । ’अ’= सम्पूर्ण । ज्ञ= ज्ञान । ’अज्ञ= अखिलं ज्ञायते येन, अर्थात जिसे सब पता हो वह हुआ ’अज्ञ’ और सारे ज्ञानों से संपृक्त व्यक्तित्व का नाम ’अज्ञेय’ । अज्ञेय नाम कवि वात्स्यायन से ऐसे चिपक गया है जैसे त्वचालिप्त मांस-पिंड । इसलिये यथा नाम तथा गुण के कारण अज्ञेय मुझे बहुत प्रिय हैं । अज्ञेय का अर्थ मूर्ख करने वाली व्याख्या से हम बाद में निपट लेंगे । वैसे न जानने योग्य या अज्ञात व्यक्तित्व समझकर अज्ञेय उपनाम जैनेन्द्र ने उन्हें दे दिया जो दिल्ली जेल से भेंजी गयी इनकी कहानी के साथ जैनेन्द्र जी ने बनारस के जागरण में भेंज दी । स्वयं को अज्ञेय को यह नाम प्रिय नहीं था, परन्तु ” एक बार चल गया तो चल गया ” ।

अज्ञेय की इस बहुश्रुत बहुज्ञ कारयित्री प्रतिभा को सादर स्मृति में लेते हुए मैंने अपने परियोजना कार्य में अज्ञेय को ही चुना है । ’अज्ञेय के काव्य में काम, ध्यान और अध्यात्म’ के विवेचन का मेरा प्रयास है । वैसे तो यह बौने का आकाश चूमने जैसा प्रयास है, या कालिदास की भाषा में कहें – “ततुं उडुपेनापि सागरम” जैसा कार्य है, फिर भी अज्ञेय के काव्य की विशिष्ट एवं अदभुत गरिमा ने मुझे यह कार्य सम्पन्न करने का साहस प्रदान किया है , और इसी का प्रतिफल है यह निबंध ।

इत्यलम !

4 विचार “प्रस्तावना (जारी…)” पर

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